"प्यारी आपी आदाब
हम लोग यहां ख़ैरियत से हैं और ख़ुदा से दुआ है कि आप लोग भी ख़ैरियत से होंगे।
आपका ख़त मिल..... जवाब देने में देर हो गई......"
आपको याद है आपने आख़िरी बार किसी को ख़त कब लिखा था, या आपके नाम किसी
की तहरीर कब आई थी। शायद सालों पहल, जब दूरदराज़ रहे
रहे रिश्तेदारों, और दोस्तों की ख़ैरियत जानने और उन्हें अपना हाल सुनाने के लिए
ख़तो किताबत हुआ करती थी। रिश्तेदारों और दोस्तों की लिखाई देखकर ही आंखे गीली
हो जाया करती थीं। ईद, बकरा ईद, दीवाली, क्रिसमस और नए साल पर ग्रीटिंग्स
भेजे जाते थे.... ईद बकरा ईद और दीवाली पर ख़त पहुंचाने आए डाकिए
भी बख़्शीश लिए बग़ैर दरवाज़े से टलते नहीं थे। फिर टेलीफोन घर घर पहुंच गया और
फोन पर ही एक दूसरे की ख़ैरियत पता चलने लगी.... फिर आया इंटरनेट का ज़माना..
ईमेल और ईग्रीटिंग्स का भी जो़र निकला.... और फिर HAPPY B'DAY और
HAPPY NEW YEAR के एसएमएस से ही काम चलने लगा। और अब वो दौर भी
ख़त्म ही समझिए... क्योंकि आज हम अपनी भागती दौड़ती ज़िंदगियों में इतने
खो गए हैं कि अपने दूरदराज़ रह रहे रिश्तेदारों और दोस्तों को याद करने का भी वक़्त
नहीं है.... अब पुराने दोस्तों को ORKUT पर ढूंढ लिया जाता है और बेगाने
लोगों और बेगानी societies से ही काम चला कर खुश हो लिया जाता है। हम भूल गए हैं कि
कहीं किसी शहर में... किसी क़स्बे में कहीं किसी छोटे से गांव में हमारा एक रक़ीब
रहता है जो इंटरनेट नहीं जानता जिसके पास मोबाईल फोन भी नहीं है.. उसे आज
भी हमारे ख़त का इंतज़ार है... वो रोज़ डाकिए का इंतज़ार करता है कि शायद हमने
उसके लिए कुछ भेजा हो... उसे इंतज़ार है हमारे ख़त का कि हम अपना हाल अपने हाथ से
लिखकर भेजें.. कुछ शिकायतें कुछ, शिकवे, कुछ प्यार मोहब्बत की बातें करें,
कुछ रूढें, कुछ उसे मनाएं, कुछ गए ज़माने की बातें ,
कुछ आने वाले अच्छे वक़्त की उम्मीदें,
कुछ पुराने किस्से कुछ पुराने नाम लें,
कुछ उसका हाल पूछें कुछ अपना बताएं,
उसे आज भी इंतज़ार है हमारे ख़त का.............
" फ़िर आज किसी का ख़त आया
ये रस्ता जंगल बाड़ी का
सदियों में किया तय लम्हों ने
इन सीधी सादी सतरों ने
इस हल्के फुल्के नश्तर ने
बे कैफ़ फ़ज़ा को बदला है
इक उम्र गई जो खोई थी
वो दौलते ग़म फिर बख़्शी है
फिर आज किसी का ख़त आया
इन सीधी सादी सतरों में
कोई उलझी उलझी बात नहीं
अश्कों की कोई सौग़ात नहीं
कहते हो हाल लिखो अपना
मसमूम हवा
बे आबो दवा
इक उम्र कटी
पर शहर नया
बे रंग क़लम
भीगा काग़ज़
गर बैढे लिखने क्या लिखें
तुम दूर सही
तुम मेहरम हो
पल भर को बंद करो आंखे
फिर छलके पानी प्याले से
फिर छिलके छिलके प्याज़ खुले
फिर आंख मिचौली खेल चले
सब पर्दे पर उतरे मंज़र
ये रास्त जंगल बाड़ी का
ये जोबन टुंड बबूलों का
ये मौसम पीले फूलों का
तुम दूर सही तुम मेहरम हो
सब देखोगे सब जानोगे"
"अशरफ़ आबिदी"
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5 comments:
आह! कितना प्यारा ख़त है. एक अरसा गुजर गया था ख़त पढ़े हुए...
"Chalo khat likhen jii mein aata to hoga,
Magar ungliyaan kampkapati to hongi,
Qalam haath se choot jata to hoga,
Umangein qalam phir uthati to hongi,
mera naam apni kitabon pe likh ke,
wo danton mein ungli dabati to hogi...."
.... bichare Kamaal Amrohi ne jab gana likha tha to unhe maaloon nahi hoga ki ye gana itni jaldi bemani ho jayega. ab to ungliyan bhi lifafa kholne ka hunar bhool gayeen hain kambakht. ab to aashiq bichare ye bhi nahi keh payenge.... " Qaasid ke aatey aatey, khat ek aur likh rakhoon! main jaanta hoon wo kya likheinge jawab mein."
मैंने पिछला ख़त बारह साल पहले लिखा था.. बारह साल!!! हम्म... और अब तो डाकिए सिर्फ़ टेलिफ़ोन या बिजली बिल या परीक्षा के एडमिट कार्ड ही लाते हैं लगता है.. और शायद कुछ सालों बाद वो भी नहीं.. सब इंटरनेट पे ही होगा... फिर ख़त के मायने या इन ग़ज़लों और शेर के मायने कोई कैसे समझेगा? :-(
a very beautiful letter and equally beautiful thoughts,this letter once again brought back memories of letters that i used to write to my mother.letters that i wrote to my friends and it was so much more beautiful to express my thoughts through them .
sumaira,june6,9.09pm
बरसों बाद इतना खूबसूरत ख़त पढ़ा। पढ़ते ही अपनी डायरी में रखे वो पुराने ख़त और सूखे हुए फूल याद आ गए। शुक्रिया उन्हें याद दिलाने का। आज कुछ वक्त अतीत के लिए निकालेंगे।
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