शहज़ादी बहुत देर तक क़िले की दिवार पर शहज़ादे के इंतज़ार में बैठी रही.... लेकिन शहज़ादा नहीं आया। जब दिन ढल गया और आसामन पर तारे झिलमिला उठे तो शहजा़दी बोझिल क़दमों से वापस लौट गई। शहज़ादी के लौटते ही शहज़ादा वहां पहुंचा मगर तब तक शहज़ादी जा चुकी थी। शहज़ादा सुबह तक क़िले की दिवार के नीचे बैठा रहा..... और जब एक एक करके तारे सुबह की रोशनी में ग़ायब होने लगे तो शहज़ादा भी लौट गया।..... उम्र भर दोनो को एक दूसरे से शिकवा रहा.....
लेकिन सोचने वाली बात ये है कि आख़िर हमेशा ही शहज़ादियां इतनी जल्दी में क्यों होती हैं और शहज़ादे हमेशा देर से क्यों आते हैं।
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2 comments:
Wohi deewar....wohi dard....wohi rajkumari.....wohi rajkumar...... Aur UFFFFFFF, wohi railway phatak ka phir band hona....wohi garmi...aur ghode ke pair mein phir moch! Ye kambakht time hamesha villain kyon ban jata hai har prem kahani mein.....
वक्त अगर ये बता देता कि कब क्या ऐसा करो कि सही हो जाए। तो कितना अच्छा होता। कोई किसी से अलग नहीं होता। या मिलता ही नहीं।
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