हर दौर और हर समाज में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो सत्ता और ताक़त में बने रहने के लिए हक़ और सच्चाई को
दबाते और छुपाते रहे हैं... हक़ और उसूल ये कहता है कि जिस मुल्क में आप रहते हैं उसके पिछड़ेपन और
उसकी तरक़्की में सबकी हिस्सेदारी हो..... जिस घर में आप रहते हैं उसकी बदहाली और खुशहाली में
सभी घरवालों का हक़ हो... जिस जगह आप काम करते हैं वहां के फ़ायदे और नुकसान में सब शामिल किए
जाएं.....मगर जो लोग सत्ता में होते हैं वो ताक़त और फ़ायदा सबके साथ बांटना नहीं चाहते।
और इसीलिए हर दौर में सच बोलने वालों पर ज़ुल्म किए जाते रहे हैं और आगे भी ऐसा ही होगा। क्योंकि सच बोलना और उसपर क़ायम रहना आसान बात नहीं होती। आप भी अपने आस पास देखिए... आपके मुल्क, आपके शहर आपके मोहल्ले.. आपके ख़ानदान आपके घर आपके दफ़्तर में क्या ऐसा हो रहा है.... पहचानिए ऐसे लोगों को जो अपने बहुत सारे फ़ायदे के लिए आपका ज़रा सा फ़ायदा नहीं होने देते.... जो अपने थोड़े से नुकसान से बचने के लिए आपका बहुत सारा नुकसान कर रहे हैं। ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाइये और अगर आवाज़ नहीं उठा सकते तो कम से कम जो ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी कर रहे हैं उनकी आवाज़ में अपनी आवाज़ शामिल मत करिए।
"बोल की लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़ंबा अब तक तेरी है
तेरा सुतवां जिस्म है तेरा
बोल की जां अब तक तेरी है
देख की आहंगर की दुकां में
तुंद हैं शोले सुर्ख़ हैं आंहें
खुलने लगे क़ुफ़्लों के दहाने
फ़ैला हर इक ज़ंजीर का दामन
बोल ये थोड़ा वक़्त बहुत है
जिस्मों ज़ंबा की मौत से पहले
बोल की सच ज़िंदा है अब तक
बोल जो कुछ कहना है कह ले"
"फ़ैज़ अहमद फ़ैज़"
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1 comment:
baqaul Faiz...
Chand roz aur meri jaan, faqat chand hi roz....
Zulm ki chaon mein dam lene ko mujboor hain hum.
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